स्टीविया की खेती
विशेषता – यह पौध विभिन्न औषधीय गुणों से भरपूर है। इसकी विषेषता है कि इसमें कोई रोग नहीं लगता और रासायनिक खाद की जरूरत नहीं पड़ती।
भूमि – स्टीविया की खेती करने के लिए प्रतिवर्ष 20 से 25 टन गोबर की सड़ी खाद या केंचुआ खाद 7 से 8 टन प्रति एकड़ दी जानी चाहिए। जमीन बलुई दोमट या दोमट हो, समुचित जल निकास की व्यवस्था हो।
रोपण- स्टीविया का रोपड़ कलम से मेड़ पर 40 ग 15 सेमी की दूरी पर किया जाता है, इसके लिए 15 सेमी लम्बी कलम को काटकर पालीथीन की थैलियों में लगा दिया जाता है जिसमें आधा-आधा भाग मिट्टी और केंचुआ खाद होता है।
रेापाई का समय – जून और दिसम्बर माह को छोड़कर बाकी बचे 10 माह में किसान भाई इसका बुआई कर सकते हैं लेकिन फरवरी व मार्च का महीना सबसे उपयुक्त होता है। एक बार फसल बुआई पर साल में हर 03 महीने पर पैदावार हासिल कर सकते हैं।
उत्पादन – एक एकड़ में खेती करने पर 40 हजार पौध की आवष्यकता है। इसका पौध 60 से 70 सेमी बड़ा होता है। यह एक बहुवर्षीय तथा बहुषाखीय झाड़ीनुमा पौधा है।
गुण- यह चीनी से 25 से 30 गुना मीठी होती है। लेकिन यह कैलोरी फ्री होती है। मधुमेह के रोगियों, रक्तचाप, मसूड़ों और त्वचा की बीमारी में यह काफी असरदार है। यह एंटी फंगल का भी काम करती है। खेती रायपुर, पुणे, बंगलौर, लखनऊ इत्यादि जगहों पर हो रही है। एक एकड़ में लगभग 1 लाख का खर्च आता है और किसान भाई 5-6 लाख रूपयों का पत्तियॉ बेच रहे हैं। पत्तियों को सुखाकर डिब्बे में बन्द करके बेचा जाता है।
गूढ बात – वैज्ञानिक तथा अनुसंधान परिषद, भारत सरकार की संस्था केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान लखनऊ द्वारा विकसित किस्म सीमैप मीठी, सीमैप मधु का प्रवर्धन बीजों द्वारा या वानस्पतिक फसलों द्वारा जड़ सहित छोटे कल्लों द्वारा होता है। फलस्वरूप बोने की लागत काफी कम हो जाती है। इस संस्थान ने पौध की रोपाई अक्टूबर नवम्बर में करने की संस्तुति भी है। साथ ही एक एकड़ में केंचुआ खाद के अतिरिक्त 25-25 कि0ग्रा0 फास्फोरस व पोटास पौधा रोपण के समय खेत में मिला दें। इसके अतिरिक्त कुल 60 कि0ग्रा0 यूरिया को 3 बार बराबर बराबर मात्रा में खड़ी फसल में देना चाहिए।