वसंतकालीन अरबी की खेती ज्यादा लाभकारी

अरबी को घुइयां भी कहते हैं, इसकी खेती मुख्यतः खरीफ मौसम में की जाती है, लेकिन सिंचाई सुविधा होने पर वसंतकालीन में भी की जाती है, इस की सब्जी आलू की तरह बनाई जाती है और पत्तियों को भाजी पकौड़े बनाए जाते हैं
अरबी के केंद्रों में प्रमुख रूप से स्टार्च होता है, इसकी पत्तियों में विटामिन ए, कैल्षियम, फासफोरस और आयरन पाया जाता है।
आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विष्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र सोहांव, बलिया के अध्यक्ष प्रो0 रवि प्रकाष मौर्य ने बताया कि अरबी वसंतकालीन और खरीफ दोनों मौसम में उगाई जाती है।


भूमि


अरवी के लिये पर्याप्त जीवांष और उचित जल निकास वाली रेतीली दोमट भूमि उपयुक्त रहती है,


उर्वरक का प्रयोग


खेत की तैयारी के समय 3 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद प्रति कट्ठा यानी 125 वर्गमीटर के हिसाब से अरबी बोआई के 15-20 दिन पहले खेत में मिला देनी चाहिए, मिट्टी की जॉंच के बाद ही उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए, अधिक उपज लेने के लिये यूरिया एक किलोग्राम, सिंगल सुपर फास्फेट 4.70 किलोग्राम, म्यूरेट आफ पोटाष 2 किलोग्राम की मात्रा बोआई के पहले खेत में मिला देना चाहिए, आधा यूरिया बोआई के 35-40 दिन पर और 70 दिन बाद खड़ी फसल में टॉप ड्रैसिंग के रूप में देना चाहिए,


बोआई का सही समय


वसंतकालीन फरवरी महीने में और खरीफ के लिये 15 जून से 15 जुलाई तक बोआई की जाती है।


बीज/कंद की मात्रा


बोआई के लिये अंकुरित कंद 10-15 किलोग्राम प्रति बिस्सा/कट्ठा की जरूरत पड़ती है,


बीजोपचार कैसे करें


बोने के पहले कंदों को मैंकोजेब 75 फीसदी डब्ल्यूपी 1 ग्राम प्रति लिटर पानी के घोल में 10 मिनट तक डुबो कर उपचारित कर बोना चाहिए,


ऐसे करें बोआई


समतल क्यारियों में कतारों की आपसी दूरी 45 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 30 सेंटीमीटर और कंदों की 5 सेंटीमीटर की गहराई पर बोआई करनी चाहिए या फिर 45 सेंटीमीटर की दूरी पर मेंड बना कर दोनों किनारों पर 30 सेंटीमीटर की दूरी पर कंदों की बोआई करें, बोआई के बाद कंदों में मिट्टी से अच्छी तरह ढक देना चाहिए,


उन्नत किस्में


अरवी की किस्मों में नरेन्द्र अरवी-1,2 राजेन्द्र अरवी-1 प्रमुख हैं।


सिंचाई


वसंतकालीन फसलों के लिये जरूरत के मुताबिक 15 दिनों के अंतर पर 5-6 सिंचाई करें, खरीफ में अरबी की फसल को सिंचाई की आवष्यकता नहीं होती है अच्छे उत्पादन के लिये वर्षा न होने पर 15 दिन के अंतराल पर जरूरत पड़ने पर सिंचाई करें,


निराईगुड़ाई


खरपतवारों को नष्ट करने के लिये कम से कम 2 बार निराईगुड़ाई करें और अच्छी पैदावार के लिये 2 बार हलकी गुड़ाई जरूर करें,
पहली गुड़ाई बोआई के 40 दिन बाद व दूसरी 60 दिन के बाद करें, फसल में एक बार मिट्टी चढा दें, अगर तने अधिक मात्रा में निकल रहे हों, तो एक या 2 मुख्य तनों को छोड़ कर शेष सब की छंटाई कर देनी चाहिए,

पौध स्वास्थ्य प्रबंधन


अरवी में झुलसा रोग से पत्तियों में काले-काले धब्बे हो जाते हैं, बाद में पत्त्यिां गल कर गिरने लगती हैं, इस का उपज पर बुरा असर पड़ता है, इय की रोकथाम के लिये 15-20 दिन के अंतर से कार्बडाजिम 12 फीसदी या मैंकोजेब 75 फीसदी डब्ल्यूपी 2 ग्राम प्रति लिटर पानी के घोल का छिड़काव करते रहें, साथ ही फसल चक्र अपनायें ।


सूड़ी कीट का प्रबंधन


अरवी की पत्तियों को खाने वाली सूंडी द्वारा हानि होती है, क्योंकि यह कीड़े नई पत्तियों को खा जाते हैं, इस की रोकथाम के लिये इमिडाक्लोप्रिड 17.8 फीसदी 1 मिलीलीटर को 3 लीटर पानी के घोल बना कर छिड़काव करें।


स्टीकर पदार्थ मिलायें


अरवी की पत्तियॉं चिकनी होती हैं, इसलिये दवाओं के छिड़काव के लिये घोल में चिपकने वाले पदार्थ जैसे गोंद मिला कर छिड़काव करें।


खुदाई और उपज


अरवी की खुदाई कंदों के आकार, प्रजाति, जलवायु और भूमि की उर्वराषक्ति पर निर्भर करती है, आमतौर पर बोआई के 130-140 दिन बाद जब पत्तियां सुख जाती हैं, तब खुदाई करनी चाहिए, उपज उन्नत तकनीक का खेती में समावेष करने पर प्रति कट्ठा 3 क्विन्टल तक उपज हासिल कर सकते हैंे।


भंडारण


अरवी के कंदों को हवादार कमरे में फैला कर रखें, वहां गरमी न हो, इसे कुछ दिनों के अंतराल में पलटते रहना चाहिए, सड़े हुए कंदों को निकालते रहें और बाजार मूल्य अच्छा मिलने पर जल्दी बिक्री कर दें ।

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