सामान्यतः यह रोग अधिक दूध देने वाले पशुओं को व्याने के २-३ दिनों के अन्दर ही होता है परंतु ब्याने के पूर्व या अधिकत्तम उत्पादन के समय भी हो
सकता है। पशु के रक्त में और फलस्वरुप मांसपेशियों में केल्सियम की कमी इसका मुख्य कारण होता है।
लक्षण
• साधारणतः इस रोग में ज्वर नही दुग्धज्वर में गर्दन पीछे घुमाये गाय
होता बल्कि कभी कभी स्वस्थ पशु के ताप से रोगी का ताप कुछ कम ही हो जाता है ।
पशु खाना पीना छोड़ देता है उसके कान, थन व पैर ठंडे पड़ जाते हैं।
• पशु लड़खडाता है, जमीन पर बैठ जाता है और अपनी गरदन को घुमाकर
पीछे की ओर कर लेता है या जमीन पर सीधा खींचकर रख देता है।
यदि इस समय पशु की गरदन को सीधा किया जाय तो छोड़ने पर पशु
उसे फिर पूर्ववत कर लेता है ।पशु को श्वांस लेने में कष्ट होता हैं।
रोकथाम
विटामिन डी की पूर्ति हेतु पशु को मौसम को देखते हुए कुछ समय घूप में भी रखना चाहिये।
• ब्याने के एक माह पूर्व अधिक कैल्सियम तथा फास्फोरस युक्त आहार खिलाने से एस रोग
की सम्भावना नहीं रहती है।
• सूखीघास तथा चारा खिलाना भी लाभप्रद होता है।
उपचार
• इस रोग में घबरायें नहीं और तुरंत पशु चिकित्सक से सलाह लें । उपचार का जादुई
प्रभाव होता है और कुछ घंटो में ही पशु स्वस्थ हो जाता है ।