गाभिन पशु की देखभाल

बछिया के स्वास्थ्य तथा संतुलित आहार का जन्म से ही समुचित ध्यान रखने से वह कम उम्र में ही ऋतु में आ जाती है तथा वीर्यदान करवाने पर
दो से ढाई साल में बच्चा देने योग्य हो जाती है। गाभिन पशु के गर्भ का विकास 6-7 माह के दौरान तेजी से होता है, इसलिए निम्नलिखित बातों
पर विशेष ध्यान देना चाहिये।

  • 6-7 माह के गाभिन पशु को चरने के लिए ज्यादा दूर तक नही ले जाना
    चाहिये। ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर नहीं घुमाना चाहिये।
  • यदि गाभिन पशु दूध दे रहा हो तो गर्भावस्था के 7वें महीने के बाद दूध
    निकालना बंद कर देना चाहिये।
  • गाभिन पशु के उठने-बैठने के लिए पर्याप्त स्थान होना चाहिये । पशु जहां
    बंधा हो, उसके पीछे के हिस्से का फर्श आगे से कुछ ऊँचा होना चाहिये।
  • गाभिन पशु को पोषक आहार की आवश्यकता होती है जिससे ब्याने के
    समय दुग्ध-ज्वर और कीटोसिस जैसे रोग न हो तथा दुग्ध उत्पादन पर
    प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। प्रतिदिन निम्नवत भोजन की व्यवस्था करनी
    चाहिये।
    खली -1किलो
    हरा चारा – 25 से 30 किलो
    खनिज मिश्रण- 50 ग्राम
    नमक – 30 ग्राम
    सूखा चारा-5 किलो
    संतुलित पशुआहार –3 किलो
  • गाभिन पशु को पीने के लिए 75-80 लीटर प्रतिदिन स्वच्छ व ताजा
    पानी उपलब्ध कराना चाहिये।
  • पशु के पहली बार गाभिन होने पर 6-7 माह के बाद उसे अन्य दूध
    देने वाले पशुओं के साथ बाँधना चाहिये और शरीर, पीठ और यन की
    मालिश करनी चाहिये ।
  • ब्याने के 4-5 दिन पूर्व उसे अलग स्थान पर बाँधना चाहिये। ध्यान रहे कि
    स्थान स्वच्छ, हवादार व रोशनी युक्त हो। पशु के बैठने के लिए फर्श पर
    सूखाचारा डालकर व्यवस्था बनानी चाहिये।
  • ब्याने के1-2 दिन पहले से पशु पर लगातार नजर रखनी चाहिये।
    गाभिन पशु का यदि रखेंगे ध्यान
    तो फलेंगे-फूलेंगे हमारे किसान

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