आवले की खेती
(प्रस्तुत कर्ता यषवन्त सिंह, रामगढ़)
अपने देश में आवले की खेती सर्दी एवं गर्मी दोनों मौसम मे होती है। पूर्ण विकसित आंवले का पेड़ 0 से 46 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान सहन करने की क्षमता रखता है। यानी गर्म वातावरण पुष्प कलिकाओं को निकालने मे सहायक होता हे। जुलाई से अगस्त माह में अधिक नमी होने के कारण छोटे फलों का विकास होता है, बरसात के दिनों में फल ज्यादा पेड़ से गिरते है इसकी वजह से नये छोटे फलों के निकलने मे देरी होती है।
आवले की खेती के बारें मे जानिए
1. फल वैज्ञानिक डा0 एस0 के0 सिंह बताते है कि आवले की खेती बलुई मिट्टी से लेकर चिकनी मिट्टी मे सफलता पूर्वक किया जा सकता है। आवले की खेती के लिए बुआई 10 ग 10 या 10 ग 15 फीट पर की जाती है। पौधा लगाने के लिए एक घन मीटर गड्ढे खोद लेना चाहिए।
2. गड्ढो का 15-20 दिनों के लिए धूप खाने के लिये छोड़ देना चाहिए। फिर प्रत्येेक गड्ढे में 20 किग्रा0 वर्मी कम्पोस्ट या कम्पोस्ट खाद, 1-2 किग्रा0 नीम की खली और 500 गा्र0 ट्राइकोडर्मा पाउडर मिलाना चाहिए। गड्डा भरते समय 70 से 125 ग्रा0 क्लोरोपाइरीफास डस्ट भी भरनी चाहिए। मई में इन गड्डो में पानी भर देना चाहिए। वही गड्डे भराई से 15-20 दिनों बाद ही पौधे का रोपड़ किया जाना चाहिए।
3. नरेन्द्र देव कृषि विश्वविद्यालय फैजाबाद द्वारा विकसित ऑवले की तीन प्रजातियॉ – नरेन्द्र 7, कृष्णा और कंचन को क्रमशः 02:02:01 के अनुपात में लगाने से पर परागण अधिक होने के फलस्वरूप उत्पादन अधिक होता है।
4. एक वर्ष बाद पौधों को 05 से 10 किग्रा0 गोबर की खाद, 100 ग्रा0 नाइट्रोजन, 50 ग्राम फास्फोरस तथा 80 ग्रा पोटाश देना चाहिए। अगले 10 वर्षो तक पेड़ की उम्र से गुणा करके खाद तथा उर्वरकों का निर्धारण करना चाहिए और इस तरह से 10वें वर्ष में दी जाने वाली खाद एवं उवर्रक की मात्रा 50-100 किलो0 सड़ी गोबर की खाद,01 किग्रा0 नाइट्रोजन, 500 ग्रा0 फास्फोरस तथा 800 गा्र0 पोटाश प्रति पेड़ होगी।
5. पहली सिचाई पौधा रोपड़ के तुरन्त बाद होनी चाहिए। उसके बाद आवश्यकतानुसार गर्मियों में 7-10 दिनों के अंतराल पर सिचाई करनी चाहिए। पेड़ की सुसुप्तावस्था (दिसम्बर-जनवरी) में तथा फूल आने पर मार्च मे सिंचाई नही करनी चाहिए। समय-समय पर गुड़ाई-निराई करते रहना चाहिए।
6. ऑवले का कलमी पौधा रोपड़ से तीसरे साल तथा बीजू पौधा 06 से 08 साल के बाद फल देने लगता है। एक विकसित ऑवले का पेड़ 50 से 60 वर्ष चलता है और प्रतिवर्ष 01 से 03 क्विंटल फल प्राप्त होंता है।