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संक्रामक गर्भपात (Brucellosis)

यह पशुओं का एक संक्रामक रोग है जिसमें गाय/भैसो में गर्भपात और बांझपन की संभावना होती है। रोगी पशु के सम्पर्क में आने या उसकाकच्चा दूध पीने से रोग के कीटाणु मनुष्य में उतार-चढ़ाव वाले ज्वर (Undulant Fever) का रोग उत्पन्न कर सकते हैं। लक्षण गर्भावस्था के अंतिम तीन माह के दौरान गर्भपात हो जाता …

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खुरपका – मुंहपका रोग (Foot & Mouth Disease)

यह एक संक्रामक रोग है जो रोग ग्रस्त पशुओं से स्वस्थ पशुओं में केवल संपर्क से ही नहीं, वरन् चारा, दाना,पानी तथा हवा से भी फैलता है।इसमें मृत्यु की संभावना तो बहुत कम होती है, परन्तु मादा पशुओं का दुग्ध उत्पादन, उनकी गर्भधारण क्षमता और बैलों/भैंसो के कार्य करने कीक्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। …

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लंगड़ा बुखार / चुरचुरिया (Black Quarter)

यह रोग कर्नाटक, तमिलनाडु, आन्ध्रप्रदेश, महाराष्ट्र में विशेषकर और उत्तरी व पूर्वी भारत में कहीं-कहीं होता है। वर्षा ऋतु में इसका प्रकोपअधिक होता है। 6 माह से 3 वर्ष के गौवंशीय पशु अधिक प्रभावित होते हैं। भैंसों में लक्षण हल्के होते है। बीमारी के कीटाणु खाने के साथ याघाव के द्वारा शरीर में घुसते हैं।   …

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गलघोंटू / घूर्रका रोग (Haemorrhagic septicaemia)

यह एक जानलेवा संक्रामक रोग है, जो प्रायः गायों और भैंसों में वर्षा ऋतु में फैलता है, जिसमें मृत्यु दर अधिक होती है। बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों मेंतथा पानी जमाव वाली जगहों में इस बीमारी के कीटाणु ज्यादा समय तक रहते हैं। लक्षण अचानक तेज बुखार आता है,आँखे लाल हो जाती हैं औरजानवर कापने लगता है। पशु …

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थनैला (Mastitis)

यह थनों का संक्रामक रोग है, जो जानवरों को गंदे, गीले और कीचड़ भरे स्थान पर रखने से होता है | थन में चोट लगने,दूध पीते समय बछड़े / बछिया का दाँत लगने या गलत तरीके से दूध दुहने से इस रोग की सम्भावनाबढती है। यह रोग ज्यादा दूध देने वाली गायों/भैंसों में अधिक होता …

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व्याने के समय और ब्याने के बाद पशु की देख-भाल

व्याने के समय पशु की देखभालव्याने के एक दिन पहले गाभिन पशु के जनन अंग से द्रव का स्राव होता है। पशु को बाधा पहुंचाये बगैरहर एक घंटे (रात के दौरान भी) अवलोकन करना चाहिये। ब्याने के समय जननांग से एक द्रव सेभरा बुल-बुला सा निकलता है जो धीरे-धीरे बड़ा हो जाता है और अंत …

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नवजात बछड़े/ बछियों को खीस पिलाने के लाभ

नवजात बछड़े/बछियों में रोगों से लड़ने की क्षमता बहुत कम होती है।भैंस के बच्चे में यह क्षमता और भी कम होती है। खीस पिलानामाँ से ऐसी रोग-प्रतिरोधक क्षमता बच्चे में पहुंचाने का एक प्राकृतिक तरीका है। खीस नवजात पशु को प्रकृति द्वारा दिया गया एक अमूल्य उपहार हैं।इसमें अतिरिक्त पोषक तत्त्व होते हैं जैसे दूध …

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नवजात बछड़े / बछियों की देखभाल

जन्म के तत्काल बाद बछड़े / बछिया की नाक और उसका मुंह साफकरें। नवजात बछड़े / बछिया की छाती पर धीरे-धीरे, मालिश करें जिससे किउसे सास लेने में आसानी रहे। बछड़े/बछिया के पूरे शरीर को अच्छीतरह से साफ करें। मुंह में दो अंगुलियाँ डालें और उन्हें उसकी जीभ पर रखें । इससेबछड़े / बछियों को …

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गाभिन पशु की देखभाल

बछिया के स्वास्थ्य तथा संतुलित आहार का जन्म से ही समुचित ध्यान रखने से वह कम उम्र में ही ऋतु में आ जाती है तथा वीर्यदान करवाने परदो से ढाई साल में बच्चा देने योग्य हो जाती है। गाभिन पशु के गर्भ का विकास 6-7 माह के दौरान तेजी से होता है, इसलिए निम्नलिखित बातोंपर …

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कृत्रिम गर्भाधान के लाभ

जब गाय भैंस गर्मी में होती है, तब साड़ को ढूंढ़ने की जरूरत नहीं पड़ती। प्रशिक्षित कृत्रिम वीर्यदानकर्ता (इनसेमिनेटर) उन्नत साड़ केउच्च गुणवत्तायुक्त वीर्य से पशु को गर्भित कर देता है। कृत्रिम गर्भाधान द्वारा एक साड़ से अनेक पशुओं को गर्भित करायाजा सकता है। अत उन्नत सांडो का चयन संभव हो पाता है पशुओं की …

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