संयुक्त देयता समूह योजना

1. संयुक्त देयता समूह क्यों ?
नाबार्ड द्वारा 1992 में शुरू किया गया सहायता समूह-बैंक संयोजन कार्यक्रम आज जनता तक बैंकिग सुविधाएं
पहुँचाने के मामले में विश्व का सबसे बड़ा कार्यक्रम माना जाता है। सूक्ष्म वित्त पहलों के दूसरे चरण के रूप में
गतिविधि आधारित/आय अर्जक संयुक्त देयता समूह कार्यक्रम भी हमारे देश में तीव्र गति से चल रहा है।

हमारे देश में, तीन चौथाई से अधिक भू-जोतें छोटी/सीमान्त हैं। इसके अलावा, बड़ी संख्या में ग्रामीण निर्धन
लोग छोटे-मोटे स्थानीय उद्योगों में लगे हैं या काश्तकारों, बटाईदारों तथा मौखिक पट्टेदारों के रूप में अपना
जीवन यापन करते हैं। चूँकि इनके पास भूमि के मालिकाना अधिकार नहीं होते और वे बैंक से ऋण से वंचित रह
जाते हैं। बैंक से ऋण प्राप्त करने के लिए प्रतिभूति देने में असमर्थ रहते हैं लिहाजा, ये बैंक ऋण से वंचित रह जाते
हैं। बैंको से ऋण न मिल पाने के कारण ये ग्रामीण कामगार छोटे/सीमांत/काश्तकार/बटाईदार/मौखिक पट्टेदार
किसान साहूकारों से ऊँची व्याज दरों पर कर्ज लेने के लिए विवश हो कर न केवल ऋण के दुष्चक्र में फंस गए
बल्कि खेती की आधुनिक तकनीकें भी नही अपना पाए जिसके जिसके फलस्वरूप इनकी कृषि का उत्पादन और
उत्पादकता दुष्प्रभावित हुए। इन हालातों के कारण इस बात की महती आवश्यकता हो गई है कि बैंक ऐसे
कामगारों / किसानों को ऋण सुविधा दें। कृषि कार्यों हेतु बैंकों से ऋण उपलब्ध होने पर छोटे / बटाईदार/ मौखिक
पट्टेदार किसान कृषि हेतु आधुनिक तकनीक, बीज, खाद आदि का इस्तेमाल करके कृषि में उत्पादकता एवं
उत्पादन में वृद्धि कर सकते हैं | साथ-साथ इन किसानों को बैंकों से कृषि ऋण लेने पर रू0 50000/- का
व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना का लाभ भी मिल सकता है। दूसरी ओर बैंक अपने ऋण और ग्राहक क्षेत्र का
विस्तार करने के लिए तो इच्छुक हैं परन्तु छोटी-छोटी राशियों के ऋण नहीं दे पाते क्योंकि इन पर लेन-देन

लागत काफी अधिक आती है। इस परिप्रेक्ष्य में, नाबार्ड ने ऐसे कामगारों एवं किसानों को बैंकों से कम ब्याज दरों
पर ऋण लेने में सक्षम बनाने के उद्देश्य से संयुक्त देयता समूह योजना प्रारम्भ की है।

2. संयुक्त देयता समूह योजना का उद्देश्य

  • स्थानीय कामगारों एवं किसानों, खास तौर पर छोटे, सीमान्त, काश्तकार, बटाईदार तथा मौखिक
    पट्टेदार किसानों को ऋण का प्रवाह बढ़ाना।
  • लक्ष्य समूह को दिए जाने वाले ऋणों के लिए संपाश्विक प्रतिभूति का विकल्प खोजना।
  • बैंक तथा लक्ष्य समूहों के बीच आपसी विश्वास तथा सद्भाव उत्पन्न करना।
  • समूह अवधारणा, कलस्टर अवधारणा, समूह के सदस्यों को शिक्षित करके तथा उनमें ऋण
    अनुशासन की भावना पैदा करके बैंकों से ऋण दिलवाकर उनका जोखिम कम से कम करना।
  • संयुक्त देयता समूह प्रणाली के द्वारा कृषि का उत्पादन, उत्पादकता तथा जीविका के अवसर
    उत्पन्न करके निर्धन वर्ग को खाद्यान्न सुरक्षा उपलब्ध कराना।
  •  

3. संयुक्त देयता समूह की सामान्य विशेषताएं

  • यह 4-5 सदस्य ग्राहकों का समूह होता है जिसे बैंक अनौपचारिक रूप से एक समूह मान कर चलते हैं। इस समूह
    v का प्रमुख उद्देश्य सामूहिक ऋण के लिए गारंटी देकर संयुक्त देयता करार निष्पादित करना है, जिससे कि बैंकों से
    लिए ऋण तथा उस पर ब्याज की चुकौती के लिए सभी सदस्य वैयक्तिक तथा सामूहिक रूप से जिम्मेदार हो सकें।
    संयुक्त देयता समूह की प्रमुख विशेषताएं निम्नानुसार हैं:-
  • अनौपचारिक समूह।
  • गाँव के 4 से 5 सदस्य उस समूह में हों।
  • अकेले या समूह का मिल कर बैंक से ऋण लेना।
  • पारस्परिक गारंटी
  • संयुक्त बचनबद्धता।
  • एकरूप आर्थिक गातिविधि।
  • आसान प्रलेखन
  • समूह को आंतरिक स्तर पर कोई वित्तीय प्रबंधन की ज़रूरत न पड़ना

4. सदस्यता मानदंड

  • समान सामाजिक-आर्थिक स्तर, पृष्ठभूमि तथा माहौल, विचार साम्य, एक दूसरे पर विश्वास/सम्मान।
  • सदस्य किसी भी वित्तीय संस्था से ऋण लेकर चूक न कर चुके हों।
  • एक परिवार से एक समूह में एक ही सदस्य शामिल किया जाए।

5. सहभागियों को लाभ

क समूह अवधारणा के लाभ

  •  सभी के लिए ऋण।
  • नयी तकनीकों के अंतरण का जरिया।
  • भाव-तौल क्षमता का बढ़ जाना-खरीद, प्रसंस्करण, विपणन आदि सभी मामलों में।
  • क्लस्टर, फेडरेशन, उत्पादक कंपनी का विकसित हो जाना।
    ख समूह सदस्यों को लाभ
  • वित्तीय संसाधनों की ससमय उपलब्धता।
  • खेती के अन्य इनपुट समय पर उपलब्ध हो जाना।
  • खेती के कार्यों को बड़े पैमाने पर कर पाना जैसे इनपुट की खरीद, प्रसंस्करण विपणन आदि।
    समुचित खेती तकनीकों तक पहुँच।
  • खेती के उत्पादन, उत्पादकता आदि में वृद्धि हो जाना, फलस्वरूप लाभप्रदता का पहले से बढ़ जाना।

ग बैंकों को लाभ

  • सामाजिक सुरक्षा-समूह सदस्यों द्वारा आपसी गारंटी देना जिससे संपार्श्विक प्रतिभूति की ज़रूरत ही
    नहीं पड़ती।
  • उधारकर्ताओं तथा ऋणदाता बैंकों की लेनदेन लागतें कम करके व्यवसाय विस्तार करना।
    छोटे/सीमान्त/काश्तकार किसानों की आय बढ़ाने तथा ऋणों की बेहतर वसूली सुनिश्चित करने के
    उद्देश्य से ऋण तथा अन्य सहायक सुविधाएं देना।
  • स्टाफ की कमी का मुद्दा हल करना।
  • वित्तीय समावेशन सुनिश्चित करना।
  • बैंक का व्यवसाय बिना लागत के आउटसोर्स करना।
  • संयुक्त देयता समूहों को दिए जाने वाले ऋण प्राथमिकता क्षेत्र के अंतर्गत प्रत्यक्ष कृषि ऋण के रूप में
    वर्गीकृत करना।

घ सरकार को लाभ

  • किसानों को नयी तकनीकों की जानकारी देना।
    निवेशों की कार्यकुशलता बढ़ाना।
    समूह अवधारणा के माध्यम से सभी का समावेश करना।
  • निर्धन किसानों को भूमि, ऋण तथा कौशल प्रदान करने के लिए जुटाना।
  • खाद्यान्ना सुरक्षा का विविधीकरण व संरक्षण।
  • अधिक उत्पादन तथा सकल घरेलू उत्पाद पर उसका सकारात्मक प्रभाव।

6. स्वयं सहायता समूह तथा संयुक्त देयता समूह में अंतर

क्र. सं.

विवरण

स्वयं सहायता समूह

संयुक्त देयता समूह

1.

समूह का आकार (सदस्य संख्या)

20 तक

4-10 तक

2.

ऋण का प्रयोजन

विनिर्दिष्ट नहीं किया गया

विनिर्दिष्ट किया गया

गया

3.

ऋण किसको

समूह

समूह

समूह/व्यक्ति

4.

ऋण : बचत अनुपात

1:10 तक

बचत को बढ़ावा किंतु ऋण का

आकार फसल/गतिविधि पर निर्भर

5.

लक्ष्य समूह

महिलाएं

छोटे/सीमान्त/काश्तकार

किसान/ सूक्ष्म उद्यमी

7. संयुक्त देयता समूहों का संवर्धन कौन कर सकता है?

  • बैंक ऋण वितरण माध्यम के रूप में बैंक संयुक्त देयता समूहों का गठन तथा वित्तपोषण कर सकते
    हैं। वे अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करते हुए अपने स्टाफ या उपयुक्त एजेंसियों की सेवाएं उक्त
    कार्य के लिए ले सकते हैं।
  • स्वयंसेवी एजेंसियाँ/गैर सरकारी संगठन ग्रामीण क्षेत्रों में काम करते हुए छोटे/सीमान्त किसानों,
    समाज के कमजोर वर्गों की ज़रूरतें समझते हुए उन्हें वांछित प्रशिक्षण/उन्मुखता देकर संयुक्त
    देयेता समूहों का गठन करके उन्हें चला सकते हैं और उन्हें बैंकों से ऋण दिलवा सकते हैं।
  • किसानों के निरंतर संपर्क में रहने वाले किसान क्लब संयुक्त देयता समूह बना सकते हैं।
  • प्राथमिक कृषि सहकारी समितियां संयुक्त देयता समूह गठित करके न केवल जरूरतमंद किसानों की
    मदद कर सकती हैं बल्कि उनकी सदस्यता, व्यवसाय और लाभ बढ़ाने में भी सहायक हो सकती हैं।
  • कृषि विज्ञान केन्द्र, जो कृषि में तकनीकी नवोन्मेष लाने के लिए प्रयास करते रहते हैं तथा सीधे तौर
    पर किसानों के लिए काम करते हैं, भी संयुक्त देयता समूह गठित कर सकते हैं क्योंकि ये उनके
    उद्देश्यों को पूरा करने में मददगार साबित होते हैं।
  • किसान समुदायों से जुड़ी इफको जैसी संस्थाएं अपने व्यवसाय तथा कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व
    के अंतर्गत इन समूहों का गठन करने में मदद कर सकती हैं।
  • जहाँ कहीं संभव हो, राज्य सरकार के विभाग जैसे कृषि, भूमि विकास, सिंचाई आदि भी गठित करने
    पर विचार कर सकते हैं।किसान संघ, स्वयं सहायता समूह महासंघ, शिल्पी संघ, शिल्पी क्लस्टर संघ आदि
    किसानों/उद्यमियों /शिल्पियों आदि के संयुक्त देयता समूह गठित करने में मददगार हो सकते हैं।
  • किसान संघ, स्वयं सहायता समूह महासंघ, शिल्पी संघ, शिल्पी क्लस्टर संघ आदि
    किसानों/उद्यमियों /शिल्पियों आदि के संयुक्त देयता समूह गठित करने में मददगार हो सकते हैं।

8. संयुक्त देयता समूहों द्वारा बचत

  • मूलतः संयुक्त देयता समूह ऋण समूह होता है, तथापि संयुक्त देयता समूहों के सदस्यों को लगातार बचत
    करने के लिए प्रोत्साहित करने की जरूरत है। जितनी राशि बचा सकें, की बचत करने से न केवल सदस्यों में
    (अपनी उपभोग व निवेश की और आकस्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए) बचत की आदत पैदा होती है
    बल्कि वे आपसी विश्वास को बढ़ावा देने हेतु नियमित आधार पर मिल बैठ भी सकते हैं।

9. संयुक्त देयता समूहों का वित्तपोषण-मॉडल

  • बैंक निम्नलिखित में से कोई भी मॉडल अपनाकर संयुक्त देयता समूहों का वित्तपोषण कर सकते हैं।
    मॉडल ए-(समूह में व्यक्तियों का वित्तपोषण)
    संयुक्त देयता समूह उसके पास मौजूद खेती योग्य भूमि/की जाने वाली गतिविधि तथा सम्बद्ध व्यक्ति विशेष
    की ऋण अवशोषण की क्षमता आदि के आधार पर वित्तपोषक बैंक से अलग से ऋण/केसीसी लेने हेतु पात्र
    होगा।
    मॉडल बी-(संयुक्त देयता समूह का समूह के रूप में वित्तपोषण)
    संयुक्त देयता समूह के उधारकर्ता एक इकाई के रूप में कार्य करेगा तथा सभी सदस्यों की ऋण जरूरतों को
    मिलाकर ऋण की मात्रा तय की जाएगी।
    प्रयोजन तथा मात्रा
    संयुक्त देयता समूह को बड़े लचीले तरीके से ऋण दिया जाता है जिसका उद्देश्य समूह सदस्यों की ऋण
    जरूरतों जैसे फसल उत्पादन, उपभोग, बिक्री तथा अन्य उत्पादक प्रयोजन को पूरा करना होता है। चूंकि यह
    ऋण पारस्परिक गारंटी के आधार पर दिया जाता है, अधिकतम राशि दोनों मॉडलों-ए तथा बी के अंतर्गत
    रूपये 50000/- प्रति सदस्य रहती हैं।
    ऋण का प्रकार
    ऋण के प्रयोजन के अनुसार, बैंक कैश-क्रेडिट, अल्पावधि ऋण या मियादी ऋण देने पर विचार कर सकते
    हैं। संयुक्त देयता समूहों को दिया जाने वाला ऋण प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र ऋण की श्रेणी में रखा जाता है।
  • मार्जिन तथा प्रतिभूति मानदंड
    संयुक्त देयता समूहों को ऋण देने के लिए बैंकों द्वारा संपाश्विक प्रतिभूति लेने पर जोर न दिया जाए। तथापि
    यह सुनिश्चित किया जाए कि संयुक्त देयता समूहों द्वारा दी गई पारस्परिक गारंटी रिकार्ड में सुरक्षित रखी
    जाए। इन समूहों से मौजूदा मानदंडों के अनुरूप मार्जिन राशि ली जाए।
    प्रलेख
    मॉडल-ए-लिए जाने वाले प्रलेख हैं परिचय पत्र, आवेदन सह मूल्यांकन फार्म, संयुक्त देयता करार तथा
    प्रोनोट। बैंक नमूना फार्मों का इस्तेमाल यथोचित परिवर्तन करके कर लें।
    मॉडल-बी-स्वयं सहायता समूहों से लिए जाने वाले दस्तावेज संयुक्त देयता समूहों से भी लिए जा सकते हैं।

10. संयुक्त देयता समूहों के संवर्धन हेतु नाबार्ड से मिलने वाली प्रोत्साहन राशि

संयुक्त देयता समूहों के गठन, उन्हें चलाने तथा बैंकों से ऋण दिलाने हेतु बैंक/ नोडल एजेंसियाँ
₹ 2000/- प्रति संयुक्त देयता समूह की अनुदान सहायता हेतु पात्र हैं। इस प्रोत्साहन राशि को
नीचे दी गई तालिका के अनुसार जारी किया जाएगा।

किश्त

सूचक

प्रति संयुक्त प्रति संयुक्त पात्र सहायता

राशि₹

कुल सहायता का प्रतिशत

प्रति संयुक्त प्रति संयुक्त पात्र सहायता

राशि₹

कुल सहायता का प्रतिशत

 

 

अल्पावधि-फसली ऋण

मियादी ऋण

1.

बैंक द्वारा संयुक्त देयता समूह को ऋण स्वीकृत करने पर

1000/-

50%

1000/-

50%

2.

ऋण चुका देने पर बैंक द्वारा प्रमाणित किए जाने पर

1000/-

50%

500/-

25%

3.

नियमित रूप से ऋण चुकाने का प्रमाण पत्र बैंक द्वारा दिए जाने पर

 

100%

500/-

25%

 

 

 

 

 

 

 

कुल

2000/-

100%

2000/-

100%

11. नाबार्ड द्वारा क्षमता निर्माण सहायता
नाबर्ड बैंकों/गैर सरकारी संगठनों/अन्य पणधरियों के लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रम आयोजित करने
तथा अन्य प्रचार-प्रसार के तरीके जैसे पैम्फलेट/लीफलेट/मीडिया का उपयोग आदि पर विचार कर
सकता है।
12. अनुप्रवर्तन तथा समीक्षा
बैंक से अपेक्षित है कि वे भारतीय रिजर्व बैंक तथा नाबार्ड को निर्धारित प्रोफार्मा में तिमाही प्रगति रिपोर्ट
100%
100%
प्रस्तुत करेंगे।
13. नाबार्ड पुनर्वित्त
नाबार्ड सभी बैंकों द्वारा संयुक्त देयता समूहों को दिए जाने वाले ऋणों पर पुनर्वित्त प्रदान करेगा तथा
पुनर्वित्त का दावा करने की प्रक्रिया वहीं होगी जो स्वयं सहायता समूह संयोजन कार्यक्रम के अंतर्गत
होती है। अल्पावधि पुनर्वित्त देने के मामले में भी वही दिशानिर्देश लागू होंगे जो अल्पावधि ऋण वितरण
पर आम तौर पर लागू होते हैं।

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