अकड कर कहता है नमक-
मैं तो हूं नमक
मैं कभी नहीं बदलता अपनी राय
और पानी में घुल जाता:
इतरा कर कहती है शकर-
मैं तो हूं मीठी
मीठी ही रहूंगी हमेशा
और पानी में घुल जाती:
इसी तरह खट्टा, कडुवा, तीता, कबठा…
हर स्वाद अपनी-अपनी
अकड़ और ऐंठ लिए
घुल जाता पानी में।
पानी कहता-मैं हूं जीवन,
हर स्वाद के लिए जगह है मुझमें,
माध्यमिक हैं मेरी क्षमताएं,
समास हूं विभिन्नताओं के बीच,
रूप में अरूप में अपरूप में
बहती हैं मेरी समावेशी संस्कृति की धाराएं…
-कुंवर नारायण