यह थनों का संक्रामक रोग है, जो जानवरों को गंदे, गीले और कीचड़ भरे स्थान पर रखने से होता है | थन में चोट लगने,
दूध पीते समय बछड़े / बछिया का दाँत लगने या गलत तरीके से दूध दुहने से इस रोग की सम्भावना
बढती है। यह रोग ज्यादा दूध देने वाली गायों/भैंसों में अधिक होता है।
लक्षण
- थन/अंचल में सूजन तथा दर्द होता है और कड़ा भी हो जाता है।
- दूध फट सा जाता है और फिर खून या मवाद पड़ जाता है। कभी-कभी
दूध पानी -जैसा पतला हो जाता है।
रोकथाम
- इस बीमारी का टीका न होने के कारण रोकथाम के अन्य उपायों पर
समुचित ध्यान देना पड़ता है। - थनों को बाहरी चोट लगने से बचाएं।
- पशु-घर के फर्श को सूखा रखें, समय-समय पर चूने का छिड़काव करें और मक्खियों
का नियंत्रण करें। दूध दुहने के लिये पशु को दूसरे स्वच्छ स्थान पर ले जायें। - दुहने से पहले थनों को खूब अच्छी तरह से साफ पानी से धोना
न भूलें दूध जल्दी से और एक बार में ही दुहे, ज्यादा समय न लगाएं।
दूध दुहने से पूर्व साबुन से अपने हाथ अवश्य धो लें। - धनेला बीमारी से ग्रस्त थन का दूध एक अलग बर्तन में दुहें तथा उसे उपयोग में
न लायें। - घर में स्वस्थ पशुओं का दूध पहले और बीमार पशु का दूध आखरी में दुहें।
- दूध दुहने के पश्चात थनों को कीटनाशक घोल जैसे कि आइडोफोर में डुबोयें या घोल
का स्प्रे करें। - दूध दुहने के बाद थन नली (teat canal)कुछ देर तक खुली रहती है व इस समय पशु
के फर्श पर बैठ जाने से रोग के जीवाणु थननली के अंदर प्रवेश पाकर बीमारी फैलाते हैं।
अतः दूध दुहने के तुरंत बाद दुधारू पशुओं को पशुआहार दें जिससे
कि वे कम-से-कम आधा घंटा फर्श पर न बैठे। - दुधारू पशुओं के दुध की समय-समय पर (कम से कम माह में एक
बार) ‘मैस्टेक्ट’ कागज से जांच करते रहे | पशु के रोग से प्रभावित थन
में दवा चढ़वाएं। - दूध सूखते ही थनैला रोग से बचाने वाली दवा थनों में अवश्य चढ़वाएं।
उपचार
- उपचार और परामर्श के लिये पशुचिकित्सक से तत्काल सलाह लेनी
चाहिये । थनैला ग्रसित पशु के दूध का, उपचार के दौरान तथा उपचार
समाप्त होने के कम से कम 4 दिन बाद तक, ना तो उपयोग करें और
न ही समिति में दें क्योंकि इस दूध के पीने से मनुष्यों में गले व पेट की
बीमारियां हो सकती हैं।थनैला की रोकथाम करें
और होने वाली आर्थिक हानि को टाले