काहे री नलिनी तूं कुम्हलानी।
तेरे नाल सरोवर पानी।।
जल में उतपति, जल में वास।
जल में नलिनी तोर निवास।।
न तल तपति न ऊपरि आगि।
तोर हेतु कहु कासनि लागि।।
कहे कबीर जे उदकि समान।
ते नहिं मुए हमारे जान।।
पानी केरा बुदबुदा अस मानुष की जात
देखत ही छिप जाएगा ज्यों तारा परभात।।
-कबीर