अपसूक्त
शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।
शं योरभिस्रवन्तु न:…-ऋग्वेद :
जल ज्योतिर्मय वह आंचल है
जहां खिला-
यह सृष्टि कमल है
जल ही जीवन का संबल है।
‘आपोमयं’ जगत यह सारा
यही प्राणमय अंतर्धारा
पृथ्वी का,
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सुस्वादु सुअमृत
औषधियों में नित्य निर्झरित
अग्नि सोम मय-
रस उज्ज्वल है।
हरीतिमा से नित्य ऊर्मिला
हो वसुंधरा सुजला सुफला
देवि, दृष्टि दो-
सुषम सुमंगल
दूर करो तुम अ-सुख-अमंगल
परस तुम्हारा-
गंगाजल है।
‘जल के बिना सभी कुछ सूना
मोती, मानुष, चंदन, चूना
देवितमे,
मा जलधाराओ
‘गगन गुहा’ से रस बरसाओ
वह रस शिवतम
ऊर्जस्वल है
ऋतच्छंद का बिंब विमल है
जल ही जीवन का संबल है।
Chhavinath Mishra