साल भर हरा चारा मिलना, खासकर गर्मी के मौसम में, बहुत कठिन होता है। वर्षाऋतु के बाद जब हरा चारा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध रहता है
तो उसे ‘साइलेज’ या ‘हे’ बनाकर संरक्षित कर सकते हैं। चारे की कमी के समय यह हरे चारे का अच्छा विकल्प हो सकता है क्योंकि इस प्रक्रिया
में हरे चारे के सभी गुण इसमें संरक्षित रहते हैं।
साइलेज
यह अचार की भांति हरा चारा है जो सुपाच्य है और पशु इसे बहुत स्वाद से खाते हैं। एक
दाल वाली फसलों जैसे ज्वार, मक्का, बाजरा,संकर नेपियर, जई, इत्यादि के हरे चारे से
अच्छी गुणवत्ता वाला साइलेज बनता है क्योंकि इसमें कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक
होती है। उपरोक्त चारे को आधी फसलमें फूल आने पर खेत से काटकर फिर
छोटे-छोटे टुकड़ों में कुट्टी करके अपने घर के बाड़े या खेत में, जहां पानी
एकत्र न होता हो, गड्ढे में दबाकर साइलेज बनाया जा सकता है। गड्ढे
का आकार साइलेज बनाने की मात्रा पर निर्भर करता है। एक घन मीटर (एक मीटर लंबा x एक मीटर चौडा
x एक मीटर गहरा) में लगभग 5 कुंतल कुट्टी चारा दबाया जा सकता है।
गड्ढे में चारे को अच्छी प्रकार से दबाकर भरना चाहिये ताकि बीच की हवा
निकल जाए। जमीन के एक फीट ऊपर तक कुट्टी भरकर पोलिथीन से
ढककर मिट्टी डाल दें और गोबर से लिपाई कर दें। कुछ दिन बाद यदि
मिट्टी धसती है या फटती है तो ऊपर और मिट्टी डालकर छेद बंद कर
देना चाहिये, जिससे गड्ढे में हवा न घुसे। 40-45 दिन में साइलेज तैयार
हो जाता है। खिलाने के लिए आवश्यक मात्रा भर ही निकालें। एक बार
गड्ढा खोलने के बाद यथाशीघ्र उसका उपयोग कर लें।