MACS 6478
भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान, अघारकर
अनुसंधान संस्थान ने एमएसीएस 6478 नामक गेहूं की एक ऐसी किस्म विकसित की है, जो
उत्पादन को दोगुना तक बढ़ा सकती है. ज्यादा उत्पादन मतलब ज्यादा मुनाफा. वैज्ञानिक इसे गेहूं
की सबसे बेहतरीन किस्म मान रहे हैं.
गेहूं की इस किस्म की खास बात यह है कि इस में रतुआ रोग नहीं लगता. रतुआ की वजह से गेहूं
की फसल बरबाद हो जाती है,जिस से किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है. ऐसे
में ये नई किस्म किसानों को इस समस्या से छुटकारा दिला सकती है.
नव विकसित सामान्य गेहूं या ब्रेड गेहूं, जिसे उच्च उपज देने वाला एस्टिवम भी कहा
जाता है, 110 दिनों में ही पक जाती है, जबकि दूसरी किस्में 120 से 130 दिनों में पक कर तैयार
होती हैं. रोग प्रतिरोधी क्षमता वाले इस के पौधे भी मजबूत होते हैं और इस के अनाज मध्यम आकार
के होते हैं. इस की पौष्टकिता भी दूसरी फसलों से ज्यादा होती है. इस के अनाज में 14 प्रतिशत
प्रोटीन, 44.1 पीपीएम जस्ता और 42.8 पीपीएम आयरन होता है
प्रमाणित होने के लिए अघारकर अनुसंधान संस्थान ने महाराष्ट्र के जिला सतारा के कोरेगांव
तहसील के कुछ गांवों में प्रयोग के तौर पर इस नई किस्म की खेती कराई, जिस का असर बहुत ही
सकारात्मक रहा है.
नई किस्म के साथ 45-60 क्विटल प्रति हेक्टेयर की उपज मिल रही है, जबकि पहले औसत उपज
25-30 क्विटल प्रति हेक्टेयर थी. पहले ये किसान लोक 1, एचडी 2189 और अन्य दूसरी पुरानी
किस्में लगाते थे. वैज्ञानिक काफी समय से गेहूं की ज्यादा उत्पादन वाली किस्म पर
काम कर रहे हैं. ऐसे में इसे गेहूं का सब से अच्छा बीज भी कहा जा सकता है.
गेहूं रबी सीजन की प्रमुख फसल है. इस की बोआई अक्तूबर महीने से शुरू हो जाती
है. भारत में गेहूं का उत्पादन भी साल दर साल बढ़ रहा है.
साल 1964-65 में जहां गेहूं का कुल उत्पादन 12.26 मिलियन टन था, वहीं साल 2019-20 में
उत्पादन बढ़ कर 107.18 मिलियन टन तक पहुंच चुका है.
एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में साल 2025 तक यहां की आबादी तकरीबन 1.4 बिलियन हो
सकती है, जिस के लिए गेहूं की मांग भी तकरीबन 117 मिलियन टन तक हो सकती है. इस के लिए
उत्पादन बढ़ाना जरूरी है. ऐसे में बीज की नई किस्म इस में मददगार बन सकती है.