यह एक संक्रामक रोग है जो रोग ग्रस्त पशुओं से स्वस्थ पशुओं में केवल संपर्क से ही नहीं, वरन् चारा, दाना,पानी तथा हवा से भी फैलता है।
इसमें मृत्यु की संभावना तो बहुत कम होती है, परन्तु मादा पशुओं का दुग्ध उत्पादन, उनकी गर्भधारण क्षमता और बैलों/भैंसो के कार्य करने की
क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
लक्षण
- अचानक तेज बुखार आता है, पशु बेचैन रहता है,खाना-पीना बंद कर देता है और उसका दूध भी घट
जाता है। - मसूड़े, जीभ और खुरों में छाले निकल आते हैं,जिनके फूटने पर घाव बन जाते हैं।
- मुंह और पैर में छालों की वजह से मुंह से अधिक झागदार लार निकलती है और पशु लंगड़ाने लगता है।
रोकथाम
- सारे पशुओं को नियमित रूप से टीका लगवाना चाहिये।
- जिस गाँव म खुरपका-मुंहपका रोग फैल रहा हो वहाँ स्वस्थ पशुओं को टीका लगवाना चाहिये, किन्तु ध्यान
रखें की हर पशु के लिए अलग सुई का प्रयोग हो । - बीमार जानवरों को स्वस्थ जानवरों से अलग कर,साफ-सुथरे और सूखे स्थान में रखना चाहिये और
उन्हें इधर-उधर घूमने नहीं देना चाहिये।
उपचार
- लाल दवा (पोटेशियम परमैंगनेट) के 1:1000 के घोल से मुंहपका-खुरपका के घावों को धोयें।
- पशुचिकित्सक से सलाह लें।
डॉक्टर से प्रयोगशाला परीक्षण (Laboratory test) हेतु नमूने एकत्र करने का अनुरोध करें।
पशुओं को खुरपका मुंहपका टीका लगवायें,
अपनी आर्थिक हानि बचायें।